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लेखनी कहानी -13-Jun-2022 गाय और कुत्ते की रोटी

गाय और कुत्ते की रोटी 

मेरी मां अनपढ़ थीं शायद इसीलिए पहली रोटी गाय की और आखिरी कुत्ते के लिए बनातीं थी । भगवान को बहुत मानती थी। मैं सोचता हूं कि शायद अनपढ़ लोग भगवान को ज्यादा मानते हैं अन्यथा पढ़े लिखे तो माननीय उच्चतम न्यायालय में यह शपथपत्र दाखिल करते हैं कि भगवान श्रीराम एक काल्पनिक नाम है जिसका हकीकत से कोई संबंध नहीं है।

मेरा विवाह हुआ । मेरी पत्नी अंग्रेजी में एम ए , आर्य समाजी । मुझे लगा कि गाय और कुत्ते की रोटी तब तक ही बन पायेगी जब तक मां है । लेकिन हमारी श्रीमती जी ने उस "जीव जंतु कल्याणकारी योजना" को बिना टीवी पर विज्ञापन दिए और बिना वाह वाही लूटे बदस्तूर जारी रखा ।
हमारे पड़ोस में एक चौराहे पर एक दो गाय सुबह सुबह आती थी । मैं वह गाय की रोटी उन्हें खिला आता था। एक दिन उनका मालिक मुझे वहीं मिल गया । मैंने बातों ही बातों में उससे गाय का अर्थ गणित पूछ लिया। वह गुस्से से बोला : साहब इन दोनों गायों पर हमारे महीने के कम से कम दो हजार रुपए खर्च हो जाते हैं । दूध हमेशा तो देती नहीं हैं लेकिन चारा , खल , बांट , दवा आदि तो हमेशा करना पड़ता है । थोड़ा सा चारा कुछ लोग सुबह सुबह धर्म के नाम पर गायों को खिला जाते हैं , पर उससे गायों का पेट थोड़ी भरता है । मैंने तो पिताजी से कई बार कह दिया कि इनको बेच दो लेकिन वो पुराने जमाने के अंधविश्वासी आदमी हैं , कहते हैं कि गाय तो ईश्वरीय वरदान है , इसका तो मूत्र भी औषधि है और दूध तो अमृत से कम नहीं है, इसलिए बेचने नहीं देते । जब वो बुड्ढा मर जायेगा तो फिर इनको बेच दूंगा ।

मुझे लगता है कि हमारी सभ्यता , संस्कृति , दर्शन भी तभी तक जीवित हैं जब तक यह अनपढ़ , गंवार , जाहिल लोग जीवित है वरना तो अंग्रेजीदां लोग धर्मनिरपेक्षता की घुट्टी में सब कुछ भूल गए हैं।

खैर , एक दिन पता चला कि देश की सरकार गायों की हत्या रोकने के संबंध में कोई कानून बनाने जा रही है । बस फिर क्या था , बड़े बड़े नेता , बुद्धिजीवी , कलाकार , पत्रकार , अंग्रेजीदां लोग इसके विरोध में खड़े हो गए और आंदोलन करने लगे । मुझे हैरानी तो तब हुई जब बहुत सारे पशु प्रेमी भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। वो लोग शायद गाय को पशु भी नहीं मानते हैं । 

सड़कों पर भीड़ बढ़ने लगी । जिस प्रकार आजादी के आंदोलन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने नारा लगाया था कि "स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा" उसी प्रकार आंदोलनकारी नारा लगा रहे थे कि " बीफ खाना मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं बीफ खाकर रहूंगा " । बॉलीवुड की कुछ हीरोइन ने तो बीफ खाते हुए अपनी फोटो भी शेयर की और उस पर लिखा भी " यम्मी" ।

एक दिन मैं एक सड़क से गुजर रहा था कि मैंने आंदोलनकारियों में अपने मित्र हंसमुख लाल जी को देखा। मैंने इशारे से उनको अपने पास बुलवाया और माजरा पूछा तो वो पहले तो शर्माए , फिर खिसिआए और फिर बतियाए । 
" भाईसाहब , आप तो जानते ही हैं कि मैं बीफ तो क्या अंडे को भी हाथ तक नहीं लगाता हूं । लेकिन दो हजार रुपए के कारण मैं इस आंदोलन में शामिल हो गया। दो घंटे के दो हजार। इससे बढ़िया और क्या धंधा हो सकता है भला " 
मैंने उनसे कहा कि अगर कोई तुम्हें एक लाख रुपए दे दे तो क्या तुम देश , मां को बेच दोगे ? 

वो एकदम से भौंचक्के रह गए और आयोजक को बुला कर उसके हाथ में दो हजार का नोट पकड़ाकर उस रैली से बाहर आ गए । 

मैंने देखा कि सामने से एक लाल रंग की सरकारी बस आ रही थी । आंदोलनकारियों ने उस बस को रोक लिया और तोड़ फोड़ करने लगे। पता नहीं आंदोलन का सरकारी संपत्ति से क्या बैर है जो आंदोलनकारी उस पर ऐसे पिल पड़ते हैं जैसे कोई सांड लाल कपड़ा देखकर उसके मालिक पर पिल पड़ता है । बस के शीशे तोड़ दिये गये । उसमें आग लगा दी गई। बस में सवारियां भी थीं लेकिन उन्हें उतरने नहीं दिया गया। वो तो पुलिस ने आंदोलनकारियों के नेताओं से हाथ जोड़कर निवेदन किया और अपनी नौकरी की दुहाई दी तब जाकर आंदोलकारी माने और उन्होंने सवारियों को जाने दिया । 

एक दिन मैं गाय की रोटी लेकर उस चौराहे पर गया तो देखा कि वहां बड़ा मजमा लग रहा है। उस गाय को चौराहे पर काटने की तैयारी हो रही है। वहीं गाय वाला भी था । मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि परसों उसके पिताजी की मृत्यु हो गई थी । कल ये लोग इस गाय को खरीदने आये । मैं इसे पचास हजार में बेचना चाहता था पर इन्होंने मुझे पूरी एक पेटी दे दी । अब ये गाय का कुछ भी करें , मुझे क्या ? 

उस चौराहे पर गाय को काट कर वहीं बीफ पकाया गया और लोगों ने फोटो खिंचवा कर खाया । अगले दिन सभी समाचार पत्रों ने उस खबर को क्रांतिकारी, अति क्रांतिकारी घोषित करते हुए प्रथम पृष्ठ पर नमक मिर्च लगा कर छापा ।

मेरे लिए समस्या हो गई । गाय की रोटी को कहां ले जायें । श्रीमती जी तो अड़ गई कि सासूजी ने मुझसे वादा लिया था इसलिए मैं तो भीष्म प्रतिज्ञा नहीं तोडूंगी । 

खैर , मैंने एक हल निकाल लिया।‌ हम दोनों सुबह पार्क में घूमने जाते हैं तो वहां बहुत से जीव जंतु मिलते हैं । हम लोग वो रोटी पार्क में ले गये । एक गिलहरी वहां बैठी थी । हमने उस रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े कर गिलहरी के सम्मुख डाल दिये । गिलहरी ने कुछ टुकड़े खाये और फिर अचानक वह चली गई। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं कुछ सोचता इससे पहले मैंने देखा कि वह गिलहरी चार पांच गिलहरियों को लेकर वहां आई और सारी गिलहरियां उस रोटी को खाने लगीं । मेरा मन गदगद हो गया। एक ये जानवर हैं जो अकेले नहीं खाते बल्कि सब मिल बांटकर खाते हैं और एक ये इंसान है जो सब कुछ अकेले हजम करना चाहता है ।

दूसरी रोटी कुत्ते की है । हमारी कॉलोनी में आजकल कुत्ते बहुत हो गये हैं । एक दिन मैं वह रोटी लेकर घर के बाहर सड़क पर आया तो मेरे हाथ में रोटी देखकर वो सब मुझ पर उसी तरह टूट पड़े जिस तरह किसी अकेली लड़की को देखकर इंसान के वेश में भूखे भेड़िए टूट पड़ते हैं । मैं बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागा । ये कुत्ते उस रोटी के लिए ऐसे लड़ने लगे जैसे सत्ता के लिए नेता और टीवी डिबेट में प्रवक्ता लड़ते हैं । 
शेष अगले अंक में

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

15-Jun-2022 07:11 PM

👍👌बहुत खूबसूरत

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Punam verma

15-Jun-2022 10:32 AM

Nice

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नंदिता राय

14-Jun-2022 06:31 PM

शानदार

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